सिंहासन बत्तीसी : पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी
अंबावती में एक राजा राज करता था। उसका बड़ा रौब-दाब था। वह बड़ा दानी था। उसी राज्य में धर्मसेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ। उसकी चार रानियां थी।…
अंबावती में एक राजा राज करता था। उसका बड़ा रौब-दाब था। वह बड़ा दानी था। उसी राज्य में धर्मसेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ। उसकी चार रानियां थी।…
सिंहासन की अंतिम और बत्तीसवी पुतली रानी रूपवती को राजा भोज में सिंहासन पर बैठने को लेकर कोई रूचि न देखकर अचरज हुआ। उसने राजा भोज से जानना चाहा कि…
इकत्तीसवे दिन सिंहासन की इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या ने जाग्रत होकर राजा भोज को विक्रम की कथा सुनाई। जो इस प्रकार है। राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल…
तीसवे दिन सिंहासन पर जड़ित जयलक्ष्मी नामक तीसवीं पुतली ने राज भोज को जो कथा सुनाई, वह इस प्रकार है। राजा विक्रमादित्य जितने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपस्वी।…
उन्तीसवे दिन सिंहासन की उन्तीसवीं पुतली मानवती ने कथा सुनाई, जो इस प्रकार है। राजा विक्रमादित्य वेश बदलकर रात में घूमा करते थे। ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के…
अट्ठाइसवे दिन सिंहासन की अट्ठाइसवीं पुतली वैदेही ने राजा भोज और दरबार में मौजूद दूर-दूर से आए लोगों को कथा सुनाई। जो इस प्रकार है। एक बार राजा विक्रमादित्य अपने…
अब राजा भोज समझ चुके थे कि वह इस सिंहासन के योग्य नही है, इसलिए वह सिंहासन पर बैठने का विचार छोड़कर विक्रमादित्य की शौर्यगाथा सुनने की उत्सुकतावश प्रतिदिन दरबार…
चौदहवें दिन सिंहासन पर जड़ित चौदहवी पुतली सुनयना ने राजा भोज को एक नई कथा सुनाई वह इस प्रकार है। राजा विक्रमादित्य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा…